Sunday 24 June 2012

भ्रष्‍टाचार - एक बीमारी

हमारी प्राथमिकता है एक ऐसी सोच का उन्‍मूलन जो हमें पतन के गर्त में धंसाऐ चली जा रही है। ये जहर है – भ्रष्‍टाचार।  भ्रष्‍टाचार एक ऐसी दीमक है जो न सिर्फ समाज की जडों को खोखला करती है बल्‍कि इसे बडी ही तेजी से कुचलती और नष्‍ट करती चली जाती है। हम लोग चाह कर भी इससे बच नहीं पाते और इस निरंतर टीस देने वाली विडंबना से रोज कहीं ना कहीं दो–चार होते हैं। यह हमारे समाज में गहराई तक फैल चुकी कैंसर की वो बीमारी है जिससे बचाव का कोई रास्‍ता फिलहाल किसी को भी सुझाई नहीं पड रहा। यह गंदगी और घृणा से भरी एक ऐसी मवाद है जो हमारी रगों में कब दौडने लगती है, हमें पता ही नहीं चलता। और जब तक हम जान पाऐं तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। यह हमारी आत्‍मा के साथ हमारे मष्‍तिष्‍क को भी बीमार कर चुका होता है। और जो इससे बच भी जाता है, वह बेईमानी की बेरहम तलवार से हर लम्‍हा रत्‍ती–रत्‍ती कत्‍ल किया जाता है। यह दंश उसकी आत्‍मा को बडी ही बेरहमी से कुचलता है। सिर्फ थोडे से फायदे के लिए ईमान का सौदा कर लिया जाता है, अपनी ही आत्‍मा का बडी ही बेरहमी से गला घोंट दिया जाता है, मानवता का बार–बार चीरहरण किया जाता है, भावनाओं का बलात्‍कार किया जाता है। और फिर भी हम अपने आप को सभ्‍य समाज का निर्माण करने वाली ईश्‍वरीय कृति समझते हैं तो क्‍या हमारी अक्‍ल खुद ही दया की पात्र नहीं ?

सच का सबक बच्‍चों को पढाये जाने से पहले ही बेमानी बन चुका होता है। घर के अन्‍य सदस्‍यों और बडे बुजुर्गों को झूठ बोलते देख स्‍वभावतः बच्‍चे पहले तो इससे घृणा करते हैं पर यही झूठ जब बार–बार उनके कानों में ठूँसा जाता है तो वो इसे सिर्फ स्‍वीकार ही नहीं करते बल्‍कि अपने भीतर सहेजते चले जाते हैं। झूठ के इस जहरीले जानवर का फन कुचलने के बजाय इसे इसे दूध पिला–पिला कर पाला जाता है ताकि यह समाज के साथ–साथ हमारी सभ्‍यता और संस्‍कृति को भी निगल सके। झूठ का यह छोटा सा दिखने वाला दूब ही आगे चलकर भ्रष्‍टाचार का वो विशाल वृक्ष बन जाता है जिसकी जडें हर कोने में अपनी पैठ बनाए रखतीं हैं। खास तौर पर यह बात भारतीय समाज के लिए तो कही ही जा सकती है। यहाँ पर ऊपरी तडक–भडक और बाहरी रूप रंग को ही सभ्‍यता की पहचान माना जाता है। जबकि वास्‍तव में यही गले–सडे विचार और सर्वोच्‍च बनने की ख्‍वाहिश ही हमारी पैसे के प्रति भूख का परिणाम है।

हमारा दायित्‍व है कि इस भूख को न सिर्फ खत्‍म कर दिया जाए, कुचल दिया जाए बल्‍कि इस घातक रोग का जड से ही सफाया कर दिया जाए ताकि यह दानव हमारे समाज में फिर कभी अपना सर ना उठा सके।

शेष आगे अन्‍यत्र ।।।।।।

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